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शांत-निश्चिंत भाजपा

जागरण संपादकीय ब्लॉग
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एक आम चुनाव और कुछ राज्यों के विधानसभा चुनावों में हारने के बाद भाजपा को महंगाई के खिलाफ देशव्यापी आंदोलन करने की जरूरत महसूस हुई। नागपुर से पार्टी के नए अध्यक्ष नितिन गडकरी अभी इस आंदोलन के लिए अपने सिपहसालारों का चयन कर रहे हैं। इसके बाद पार्टी महंगाई के नाम पर केेंद्र सरकार को घेरेगी और तब तक कड़ाके की सर्दी में भाजपा के केेंद्रीय नेता अपने-अपने घरों में दुबके रहेंगे-बावजूद इसके कि आसमान छूते दामों की आग में आम आदमी रोज झुलसा जा रहा है। कांग्रेस के नेतृत्व वाली केेंद्र सरकार महंगाई के मामले में इसीलिए बेफिक्र है, क्योंकि विपक्ष, खासकर मुख्य विपक्षी दल भाजपा 2014 के आम चुनावों के लिए अपनी ऊर्जा बचाकर रखना चाहती है। बड़े मुकाबले के लिए ऊर्जा बचाना नि:संदेह बुद्धिमानी है, लेकिन जब उम्मीदों का द्वार खुला हो तब उसमें प्रवेश करने के बजाय शांत बैठे रहना मूर्खता नहीं तो और क्या है।
इससे अधिक हैरत की बात और क्या होगी कि आम आदमी को सबसे अधिक प्रभावित करने वाली महंगाई के संदर्भ में जितनी संवेदनहीनता कांग्रेस दिखा रही है उससे कहींअधिक भाजपा ने भी इससे अपना मुंह मोड़ रखा है। जिन्ना में पंथनिरपेक्ष गुण ढूंढने वाले भाजपा नेताओं को यह नहीं दिख रहा कि दाल, चीनी, सब्जियों के दाम किस तरह आम आदमी की पहुंच से दूर होते जा रहे हैं। होना तो यह चाहिए था कि महंगाई के मुद्दे पर पूरे देश में भाजपा के छोटे-बड़े नेता आम आदमी के साथ सड़कों पर खड़े होते और लोकतांत्रिक तौर-तरीकों की मदद से ऐसा आंदोलन खड़ा कर देते कि मनमोहन सिंह की टीम की रातों की नींद उड़ जाती। भाजपा चाहे तो महंगाई के मुद्दे पर बहुत कुछ कर सकती है, लेकिन समस्या यह है कि वह कुछ करना चाहती ही नहीं। शर्मनाक यह है कि यह हालत उस दल की है जिसकी लोकसभा में 116 सीटें हैं और छह राज्यों में उसकी अकेले तथा तीन में सहयोगी दलों के साथ सरकारें हैं। इससे भी अधिक, वह कांग्रेस का स्वाभाविक विकल्प भी है। भाजपा कम से कम उन राज्यों में महंगाई से राहत के कुछ उपाय कर सकती है जहां वह सत्ता में है, लेकिन भाजपा के नेता महंगाई के नाम पर मीडिया में बयान देने के अलावा कुछ करने के लिए तैयार नहीं। वे चीनी की बढ़ती कीमतों के मामले में शरद पवार से इस्तीफा भी मांग रहे हैं और केेंद्र सरकार को नाकारा भी बता रहे हैं, लेकिन इस पर ध्यान देने के लिए तैयार नहीं कि जिन राज्यों में भाजपा अथवा उसके सहयोगी दलों की सरकारें हैं उनमें मुनाफाखोरों और जमाखोरों के खिलाफ क्या कार्रवाई की जा रही है? संस्कृति से संबंधित किसी भी मामले में आंदोलन-अभियान छेडऩे में देर न करने वाली भाजपा को तो विशेष रूप से यह याद होना चाहिए महंगाई के कैसे राजनीतिक दुष्परिणाम हो सकते हैं। दिल्ली में भाजपा की सरकार प्याज की भेंट चढ़ चुकी है और आज जब लगभग सभी खाद्य पदार्र्थों की कीमतें एक वर्ष में दोगुनी या उससे भी अधिक हो चुकी हैं तब भाजपा इस इंतजार में है कि बढ़ती कीमतों के मामले में मनमोहन सिंह सरकार नैतिकता के आधार पर इस्तीफा दे दे।

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